Punjab Assembly Elections Result: इस बार के पंजाब विधानसभा चुनावों में किसान आन्दोलन का मुद्दा काफी हावी रहा था। तीन कृषि कानूनों को लेकर केंद्र सरकार के खिलाफ प्रोटेस्ट करने वाले कई किसान संगठनों ने राजनीति में जाने फैसला किया था और एक साथ मिलकर चुनाव लड़ा। 22 किसान संगठनों ने मिलकर सयुंक समाज मोर्चा के बैनर के तले चुनाव लड़ा।
लेकिन ऐसा प्रतीत हो रहा है कि चुनाव आयोग द्वारा विधानसभा चुनाव परिणामों की घोषणा के दौरान गुरुवार को सबसे बड़ा झटका जिस राजनीतिक संगठन को मिल सकता है, वह है सयुंक समाज मोर्चा।
इंडिया टुडे-एक्सिस माई इंडिया एग्जिट पोल सहित कई एग्जिट पोल के नतीजों ने पहले ही किसान संघों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। एग्जिट पोल ने यह संकेत दिया कि मोर्चा को मुश्किल से एक सीट मिलेगी। इसकी हालत निर्दलीयों जैसी है जिन्हें भी सिर्फ एक सीट मिल सकती है या खाता खोलने में भी विफल हो सकता है। किसान संघों के खराब प्रदर्शन पर गरमागरम बहस हो रही है क्योंकि 60 प्रतिशत से अधिक मतदाता पंजाब के ग्रामीण इलाकों में रहते हैं।
इसके अलावा परिस्थिति भी अनुकूल थीं क्योंकि किसान आंदोलन ने पहले ही किसान समर्थक और पारंपरिक विरोधी राजनीतिक दल का माहौल बना लिया था। अनिवासी भारतीयों से भी समर्थन मिला था। कई अनुकूल कारकों के बावजूद, किसान संघ इन चुनावों में अपनी छाप नहीं छोड़ सके।
क्यों हो सकती है संयुक्त समाज मोर्चा की हार?
1. रैलियों में भीड़ की कमी
जब किसान आन्दोलन शुरू हुआ था तो बड़ी संख्या में किसानों की भीड़ एकजुट दखाई देती थी। किसान संघों ने दिल्ली और अन्य जगहों पर विरोध स्थलों पर बड़ी भीड़ खींची, लेकिन इसके उलट बलबीर सिंह राजेवाल जैसे नेता अपनी चुनावी रैलियों के दौरान केवल कुछ ही दर्शकों को आकर्षित करने में सक्षम हो पाए। मोर्चा के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार बलबीर सिंह राजेवाल का विरोधियों ने उपहास उड़ाया, वजह थी उनकी रैलियों में भीड़ की कमी।
2. राजनीति का कोई अनुभव न होना
संयुक्त समाज मोर्चा के पास कोई पूर्व चुनाव अनुभव नहीं था और सभी 117 विधानसभा क्षेत्रों में प्रचार करने के लिए पर्याप्त संसाधनों की कमी थी। किसान संघ के नेता बलबीर सिंह राजेवाल ने अपने साक्षात्कारों में चुनावी हार के लिए खराब संसाधनों और भ्रष्टाचार को जिम्मेदार ठहराया है। राजेवाल ने इंडिया टुडे को हाल ही में दिए एक साक्षात्कार में कहा कि यह उनके लिए एक नया अनुभव था और चुनाव लड़ने का फैसला इसलिए लिया गया क्योंकि राजनीति अपने सबसे निचले स्तर पर थी।
3. किसान संघों के पास कैडर वोट का अभाव
सयुंक्त समाज मोर्चा के लिए एक बड़ी कमी यह थी कि इसमें पारंपरिक राजनीतिक दलों, यानी कांग्रेस और शिरोमणि अकाली दल जैसे कैडर वोट बैंक की कमी थी। किसान नेताओं ने पहली बार चुनाव लड़ा और उन्हें पूरा विश्वास था कि वे किसान समर्थक लहर को भुनाने में सक्षम होंगे। लेकिन एग्जिट पोल में ऐसा नहीं दिखा।
4. किसान संघों में गुटबाजी
चुनाव लड़ने या न लड़ने को लेकर किसान संघों में बंटवारा हो गया था। कृषि कानूनों का विरोध करने वाले कुल 31 पंजाब किसान संघों में से केवल 22 ने चुनाव लड़ा। कोई आम सहमति नहीं थी जिसने समर्थकों को गलत संदेश भेजा और उन्हें बलबीर राजेवाल और जोगिंदर सिंह उगराहन के नेतृत्व में दो समूहों में विभाजित कर दिया। उग्राहन चुनाव लड़ने के खिलाफ थे। उन्होंने कहा कि मुख्यधारा की राजनीति में आने से सरकार के खिलाफ उनकी लड़ाई पटरी से उतर जाएगी।