KGF Real Story: साउथ की ब्लॉकबस्टर फिल्म ‘केजीएफ 2’ (KGF Chapter 2) को लेकर क्रेज लोगों पर चढ़ा हुआ है। सुपरस्टार यश (Yash) यानी रॉकी भाई की दीवानगी किसी से छिपी नहीं है। फिल्म का पहला पार्ट हिट हुआ था और अब दूसरा पार्ट भी सिनेमाघरों में धमाल मचा रहा है। 14 अप्रैल को रिलीज हुई फिल्म अब तक करोड़ों रुपये की कमाई कर चुकी हैं। ‘केजीएफ 2’ में सोने की खदानों से निकलने वाले सोने के ईर्द-गिर्द घूमती कहानी को दिखाया गया है। लेकिन क्या आपको पता है फिल्म में दिखाई गई कहानी असली है। जी हां, फिल्म की कहानी जिस सोने की खदान से जुड़ी है, उसका इतिहास काफी पुराना है। वहां से वाकई में सोना निकलता था। कर्नाटक के दक्षिण पूर्व इलाके में कोलार गोल्ड फील्ड्स स्थित है। बस इसी पर आधारित है रॉकी भाई की फिल्म की कहानी। तो चलिए आपको कोलार गोल्ड फील्ड्स की असली कहानी बताते हैं।
सालों पुराना है केजीएफ का इतिहास
कोलार गोल्ड फील्ड्स (KGF) के बारे में कहा जाता है कि यहां लोग हाथ से खोदकर सोना निकाल लिया करते हैं। 121 साल तक खुदाई की गई और इस खदान से करीब 900 टन सोना निकाला जा चुका है। ये खदान सोने के उत्पादन के लिए मशहूर थी और 1905 में दुनियाभर में सोना प्रोड्यूस करने के मामले में भारत छठें स्थान पर था। अंग्रेज इसे भारत का इंग्लैंड कहा करते थे।
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ब्रिटिश सरकार ने निकाला खूब सोना
ब्रिटिश सरकार के लेफ्टिनेंट जॉन वॉरेन को खबर मिली थी कि इस खदान में काफी सोना है। उन्होंने ऐलान कर दिया था कि जो भी व्यक्ति इस खदान से सोना खोदकर लायेगा, उसे तोहफा दिया जायेगा। ऐसे में कई गांव वाले सोना खोदने के लिए चले गए। गांव वाले खदान की मिट्टी बैलगाड़ी में भरकर जॉन के सामने ले आये। जब इसकी जांच की गई तो पता चला कि वाकई में ये असली सोना था। इसके बाद जॉन ने लोगों से करीब 56 किलो सोना निकलवाया था।
लोग हाथों से करते थे खुदाई
अंग्रेजों को पता चल गया था कि इस खदान में काफी सोना है। अब वो इसे किसी भी हाल में पाना चाहते थे। ऐसे में वो लोगों से खुदवाई करवाते थे। हाथों से खुदाई कर रहे मजदूरों की मौत होने लगी। इसके बाद अंग्रेजों ने खुदाई पर रोक लगा दी।
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खदान पर की गई रिसर्च
कहा जाता है कि रिटायर्ड ब्रिटिश सैनिक माइकल लेवेली ने अखबार में छपी इस सोने की खदान की रिपोर्ट पढ़ी। इसे पढ़कर वो भारत आये और उन्होंने इस पर पूरी रिसर्च करने का फैसला किया। लेवेली की रिसर्च के लिए साल 1875 में यहां पर फिर से खुदाई शुरू हुई। उस वक्त भारत में बिजली नहीं थी। रोशनी के लिए यहां पर बिजली का इंतजाम किया और ऐसे कोलार भारत का पहला शहर है, जहां सबसे पहले बिजली पहुंची थी। इसके बाद यहां पर ब्रिटिशर्स का आना-जाना लग गया था। यहां पर बड़े अधिकारियों ने अपना घर बनवाना शुरू कर दिया था और इसे वैकेशन स्पॉट बना दिया गया था।
खंडहर बन गया केजीएफ
आजादी के बाद भारत सरकार का केजीएफ पर कब्जा हो गया और इसका राष्ट्रीयकरण भी कर दिया गया। भारत गोल्ड माइन्स लिमिटेड कंपनी ने यहां से सोना निकालने का काम शुरू किया। शुरुआत में इस खदान से सरकार को काफी फायदा हुआ लेकिन फिर कंपनी काफी घाटे में चली गई। मजदूरों को देने के लिए पैसे भी नहीं बचे थे ऐसे में खुदाई को रोक दिया गया। बस इसके बाद ही ये सोने की खदान खंडहर में बदल गई। कहा जाता है कि अब भी इस खदान में सोना मौजूद है।